चेन्नई के माउंट रोड पर तमिलनाडु कांग्रेस पार्टी का हेडक्वार्टर है. ये पार्टी की एक ऐतिहासिक इमारत है. बाहर राहुल गांधी और सोनिया गांधी के बड़े पोस्टर लगे हैं, इमारत के अंदर पार्टी के कामराज जैसे कुछ पुराने नेताओं की तस्वीरें दीवारों से लटकी हैं.
लेकिन इमारत के अंदर रौनक़ नहीं थी, यहाँ कोई ख़ास गतिविधि दिखाई नहीं दी. कुछ लोग अपने डेस्क पर काम ज़रूर कर रहे थे लेकिन नेता और पार्टी के कार्यकर्ता कहीं नहीं दिखे.
हम उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में पार्टी के दफ़्तरों में गए थे और कार्यकर्ताओं से मिले थे जिसके बाद हम यहाँ आए थे लेकिन इन दोनों राज्यों वाला जोश इस इमारत में नज़र नहीं आया.
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"राज्य सरकार से लोग दुखी हैं"
हमें अंदाज़ा था कि 1967 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी का ढांचा कमज़ोर हो गया है. इसे ख़ुद समझने के लिए हम कांचीपुरम ज़िले के कुछ अंदर के गांवों में गए.
एक गाँव में कुछ मर्दों के साथ महिलाओं की एक बड़ी भीड़ ज़ोरदार अंदाज़ में बहस कर रही थी. नज़दीक आकर जाना कि ये पुरुष कांग्रेस और यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता थे. महिलाएं उनसे अपनी समस्याएं शेयर कर रही थीं.
कांग्रेस पार्टी के एक स्थानीय नेता गणेश ने हमें बताया कि वो अपने साथियों के साथ गांवों के दौरे पर हैं जहाँ वो लोगों को कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के बारे में बता रहे हैं और पार्टी में शामिल होने का निमंत्रण भी दे रहे हैं.
इस वक्त तमिलनाडु की सत्ता में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके का राज है. गणेश ने दावा किया कि लोग राज्य सरकार से दुखी हैं और लोकसभा चुनाव में पार्टी बुरी तरह से हारने वाली है.
वो कहते हैं, "हम कार्यकर्ता इस बात से खुश हैं कि हमारी पार्टी का गठबंधन डीएमके से हुआ है जिसका ग्राफ़ ऊपर जा रहा है."
राज्य में कांग्रेस के पास कोई जाना-पहचाना चेहरा नहीं है. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार हाल में डीएमके के बड़े नेता करुणानिधि और एआईएडीएमके की लोकप्रिय लीडर जयललिता के देहांत के बाद राज्य में एक सियासी शून्य पैदा हो गया है.
एस वी रमणी कांग्रेस के एक पुराने नेता हैं, वो कहते हैं, "ये गैप तो है. वहां पर (एआईएडीएमके में) लीडरशिप नहीं है और यहाँ (डीएमके) स्टालिन को लीडरशिप स्थापित करनी है. जनता के बीच में ये सवाल है कि दो दिग्गज नेताओं के चले जाने के बाद ये लोग सफल हो पाएंगे या नहीं. इसमें संदेह है. इन सभी चीज़ों को देखा जाए तो लोगों को लग रहा है कि इनका विकल्प होना चाहिए और हमारी पार्टी विकल्प बन सकती है."
लेकिन सियासी विश्लेषक कहते हैं दोनों द्रविड़ पार्टियां डीएमके और एआईएडीएमके अब भी काफ़ी शक्तिशाली हैं.
फ्रंटलाइन पत्रिका के संपादक विजय शंकर कहते हैं, "तमिलनाडु में कांग्रेस का आना मुश्किल है क्योंकि द्रविड़ पार्टियों के पास अब भी 60-70% समर्थन है. ये अभी कुछ समय तक कम नहीं होगा और बीजेपी इन्हें ज़िंदा रखेगी. बीजेपी हिंदी और संस्कृत थोपने की कोशिश कर रही है, और यहां के लोगों को ये पसंद नहीं है."
पिछले आम चुनाव में कांग्रेस को तमिलनाडु की 39 संसदीय सीटों में से एक भी नहीं मिली थी.
दरसल 1967 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से पार्टी यहां कभी चुनाव नहीं जीत सकी है. लेकिन लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन 1991 तक अच्छा रहा.
कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी का ढांचा काफ़ी कमज़ोर हो चुका है.
कांग्रेसी कार्यकर्ता गणेश कहते हैं, "कामराज सरकार के बाद से कांग्रेस पार्टी सत्ता में नहीं आई है. दोनों द्रविड़ दल, तमिलनाडु राजनीतिक मंच पर शक्तिशाली हैं और प्रदेश कांग्रेस में कोई प्रमुख नेता नहीं है. कांग्रेस की योजनाओं के बारे में बताने के लिए राज्य में कोई मज़बूत टीम नहीं है"
लेकिन इमारत के अंदर रौनक़ नहीं थी, यहाँ कोई ख़ास गतिविधि दिखाई नहीं दी. कुछ लोग अपने डेस्क पर काम ज़रूर कर रहे थे लेकिन नेता और पार्टी के कार्यकर्ता कहीं नहीं दिखे.
हम उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में पार्टी के दफ़्तरों में गए थे और कार्यकर्ताओं से मिले थे जिसके बाद हम यहाँ आए थे लेकिन इन दोनों राज्यों वाला जोश इस इमारत में नज़र नहीं आया.
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"राज्य सरकार से लोग दुखी हैं"
हमें अंदाज़ा था कि 1967 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी का ढांचा कमज़ोर हो गया है. इसे ख़ुद समझने के लिए हम कांचीपुरम ज़िले के कुछ अंदर के गांवों में गए.
एक गाँव में कुछ मर्दों के साथ महिलाओं की एक बड़ी भीड़ ज़ोरदार अंदाज़ में बहस कर रही थी. नज़दीक आकर जाना कि ये पुरुष कांग्रेस और यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता थे. महिलाएं उनसे अपनी समस्याएं शेयर कर रही थीं.
कांग्रेस पार्टी के एक स्थानीय नेता गणेश ने हमें बताया कि वो अपने साथियों के साथ गांवों के दौरे पर हैं जहाँ वो लोगों को कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के बारे में बता रहे हैं और पार्टी में शामिल होने का निमंत्रण भी दे रहे हैं.
इस वक्त तमिलनाडु की सत्ता में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके का राज है. गणेश ने दावा किया कि लोग राज्य सरकार से दुखी हैं और लोकसभा चुनाव में पार्टी बुरी तरह से हारने वाली है.
वो कहते हैं, "हम कार्यकर्ता इस बात से खुश हैं कि हमारी पार्टी का गठबंधन डीएमके से हुआ है जिसका ग्राफ़ ऊपर जा रहा है."
राज्य में कांग्रेस के पास कोई जाना-पहचाना चेहरा नहीं है. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार हाल में डीएमके के बड़े नेता करुणानिधि और एआईएडीएमके की लोकप्रिय लीडर जयललिता के देहांत के बाद राज्य में एक सियासी शून्य पैदा हो गया है.
एस वी रमणी कांग्रेस के एक पुराने नेता हैं, वो कहते हैं, "ये गैप तो है. वहां पर (एआईएडीएमके में) लीडरशिप नहीं है और यहाँ (डीएमके) स्टालिन को लीडरशिप स्थापित करनी है. जनता के बीच में ये सवाल है कि दो दिग्गज नेताओं के चले जाने के बाद ये लोग सफल हो पाएंगे या नहीं. इसमें संदेह है. इन सभी चीज़ों को देखा जाए तो लोगों को लग रहा है कि इनका विकल्प होना चाहिए और हमारी पार्टी विकल्प बन सकती है."
लेकिन सियासी विश्लेषक कहते हैं दोनों द्रविड़ पार्टियां डीएमके और एआईएडीएमके अब भी काफ़ी शक्तिशाली हैं.
फ्रंटलाइन पत्रिका के संपादक विजय शंकर कहते हैं, "तमिलनाडु में कांग्रेस का आना मुश्किल है क्योंकि द्रविड़ पार्टियों के पास अब भी 60-70% समर्थन है. ये अभी कुछ समय तक कम नहीं होगा और बीजेपी इन्हें ज़िंदा रखेगी. बीजेपी हिंदी और संस्कृत थोपने की कोशिश कर रही है, और यहां के लोगों को ये पसंद नहीं है."
पिछले आम चुनाव में कांग्रेस को तमिलनाडु की 39 संसदीय सीटों में से एक भी नहीं मिली थी.
दरसल 1967 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से पार्टी यहां कभी चुनाव नहीं जीत सकी है. लेकिन लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन 1991 तक अच्छा रहा.
कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी का ढांचा काफ़ी कमज़ोर हो चुका है.
कांग्रेसी कार्यकर्ता गणेश कहते हैं, "कामराज सरकार के बाद से कांग्रेस पार्टी सत्ता में नहीं आई है. दोनों द्रविड़ दल, तमिलनाडु राजनीतिक मंच पर शक्तिशाली हैं और प्रदेश कांग्रेस में कोई प्रमुख नेता नहीं है. कांग्रेस की योजनाओं के बारे में बताने के लिए राज्य में कोई मज़बूत टीम नहीं है"
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