माना जाता है कि अंधका नाम के दानव की इच्छा देवी पार्वती को अपनी पत्नी बनाने की थी.
इस मक़सद से जब अंधका ने जबरन पार्वती को पकड़ने की कोशिश की तो पार्वती ने अपने पति शिव का आह्ववान किया.
शिव ने पार्वती की पुकार सुनते ही अपना त्रिशूल उठाकर अंधका का वध कर दिया.
लेकिन एक जादुई ताकत के कारण अंधका के शरीर से गिरने वाली खून की हर बूंद से एक नया अंधका पैदा हो जाता था.
ऐसे में अंधका को मारने का सिर्फ एक ही तरीका था कि जब शिव अपने त्रिशूल से अंधका का वध करें तो खून की एक भी बूंद ज़मीन पर न गिरे.
पार्वती को ये बात पता थी कि हर दैवीय शक्ति पुरुष और स्त्री के स्वरूपों का मिश्रण होती है. पुरुष स्वरूप मानसिक क्षमता को दर्शाता है जबकि और महिला स्वरूप मूर्त या भौतिक शक्ति को.
ऐसे में पार्वती ने सभी देवताओं की शक्तियों का आह्वान किया
देवियों से सजी रणभूमि
पार्वती के बुलाने पर सभी देवताओं ने अपने महिला स्वरूप भेज दिए ताकि वे ज़मीन पर गिरने से पहले ही अंधका के खून की बूंदे पी सकें.
इसके बाद युद्ध भूमि पर सभी तरह के देवताओं के महिला स्वरूप दिखाई देने लगे.
इंद्र की शक्ति इंद्राणी के रूप में, विष्णु की शक्ति वैष्णवी और ब्रह्मा की शक्ति ब्राह्मणी के रूप में युद्ध भूमि में पहुंच गईं और उन्होंने अंधका से गिरने वाली खून की बूंदों को पी लिया. इस तरह अंधका का अंत हुआ.
मत्स्य पुराण और विष्णु धर्मोत्तर पुराण ने इस युद्ध में शामिल रही देवियों में गणपति के महिला स्वरूप का भी ज़िक्र किया है. गणपति के इस महिला स्वरूप का ज़िक्र वनदुर्गा उपनिषद में भी किया गया है.
लेकिन गणपति के शक्ति स्वरूप की तस्वीरें 16वीं शताब्दी से सामने आना शुरू हुईं.
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये तस्वीरें शायद पार्वती की सहेली मालिनी की भी हो सकती हैं जिनका चेहरा भी हाथी के मुख वाला था. पुराणों में मालिनी का ज़िक्र गणेश की देखभाल करने वाली आया के रूप में भी किया गया है.
तांत्रिक प्रथाओं का अभिन्न अंग
हाथी जैसे मुख वाली देवी चाहे गणेश की शक्ति हो या पार्वती की सहेली, वह तांत्रिक प्रथाओं का एक अभिन्न हिस्सा है, जिनमें पुरुषों के बजाय महिला को अधिक पवित्र समझा जाता है.
ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि गुप्त विज्ञान में महिला स्वरूप को सभी उत्पादक शक्तियों के स्रोत के रूप में देखा जाता था.
यानी जीवन पुरुष स्वरूप के रूप में सामने आता है, लेकिन इस स्वरूप के पालन और पोषण का काम महिला स्वरूप करता है.
भारत में ऋषियों ने हमेशा इस बात पर बहस की है कि विचारों की दुनिया (मानसिक क्षमता) या चीजों की दुनिया (भौतिक संसाधन) में से ज़्यादा क्या मायने रखता है.
ऐसे में जो लोग अमूर्त विचारों की ओर झुकाव रखते थे वे वैदिक प्रथाओं से जुड़े हुए थे, जबकि मूर्त चीज़ों की ओर झुकाव रखने वाले तांत्रिक प्रथाओं से जुड़े हुए थे.
अमूर्त विचारों वाले लोगों ने पुरुष स्वरूप के माध्यम से अपने विचारों पर काम किया जबकि मूर्त विचारों की ओर झुकने वाले लोगों ने अपने विचारों को गणेश के महिला स्वरूप के रूप में स्थापित किया.
इस मक़सद से जब अंधका ने जबरन पार्वती को पकड़ने की कोशिश की तो पार्वती ने अपने पति शिव का आह्ववान किया.
शिव ने पार्वती की पुकार सुनते ही अपना त्रिशूल उठाकर अंधका का वध कर दिया.
लेकिन एक जादुई ताकत के कारण अंधका के शरीर से गिरने वाली खून की हर बूंद से एक नया अंधका पैदा हो जाता था.
ऐसे में अंधका को मारने का सिर्फ एक ही तरीका था कि जब शिव अपने त्रिशूल से अंधका का वध करें तो खून की एक भी बूंद ज़मीन पर न गिरे.
पार्वती को ये बात पता थी कि हर दैवीय शक्ति पुरुष और स्त्री के स्वरूपों का मिश्रण होती है. पुरुष स्वरूप मानसिक क्षमता को दर्शाता है जबकि और महिला स्वरूप मूर्त या भौतिक शक्ति को.
ऐसे में पार्वती ने सभी देवताओं की शक्तियों का आह्वान किया
देवियों से सजी रणभूमि
पार्वती के बुलाने पर सभी देवताओं ने अपने महिला स्वरूप भेज दिए ताकि वे ज़मीन पर गिरने से पहले ही अंधका के खून की बूंदे पी सकें.
इसके बाद युद्ध भूमि पर सभी तरह के देवताओं के महिला स्वरूप दिखाई देने लगे.
इंद्र की शक्ति इंद्राणी के रूप में, विष्णु की शक्ति वैष्णवी और ब्रह्मा की शक्ति ब्राह्मणी के रूप में युद्ध भूमि में पहुंच गईं और उन्होंने अंधका से गिरने वाली खून की बूंदों को पी लिया. इस तरह अंधका का अंत हुआ.
मत्स्य पुराण और विष्णु धर्मोत्तर पुराण ने इस युद्ध में शामिल रही देवियों में गणपति के महिला स्वरूप का भी ज़िक्र किया है. गणपति के इस महिला स्वरूप का ज़िक्र वनदुर्गा उपनिषद में भी किया गया है.
लेकिन गणपति के शक्ति स्वरूप की तस्वीरें 16वीं शताब्दी से सामने आना शुरू हुईं.
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये तस्वीरें शायद पार्वती की सहेली मालिनी की भी हो सकती हैं जिनका चेहरा भी हाथी के मुख वाला था. पुराणों में मालिनी का ज़िक्र गणेश की देखभाल करने वाली आया के रूप में भी किया गया है.
तांत्रिक प्रथाओं का अभिन्न अंग
हाथी जैसे मुख वाली देवी चाहे गणेश की शक्ति हो या पार्वती की सहेली, वह तांत्रिक प्रथाओं का एक अभिन्न हिस्सा है, जिनमें पुरुषों के बजाय महिला को अधिक पवित्र समझा जाता है.
ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि गुप्त विज्ञान में महिला स्वरूप को सभी उत्पादक शक्तियों के स्रोत के रूप में देखा जाता था.
यानी जीवन पुरुष स्वरूप के रूप में सामने आता है, लेकिन इस स्वरूप के पालन और पोषण का काम महिला स्वरूप करता है.
भारत में ऋषियों ने हमेशा इस बात पर बहस की है कि विचारों की दुनिया (मानसिक क्षमता) या चीजों की दुनिया (भौतिक संसाधन) में से ज़्यादा क्या मायने रखता है.
ऐसे में जो लोग अमूर्त विचारों की ओर झुकाव रखते थे वे वैदिक प्रथाओं से जुड़े हुए थे, जबकि मूर्त चीज़ों की ओर झुकाव रखने वाले तांत्रिक प्रथाओं से जुड़े हुए थे.
अमूर्त विचारों वाले लोगों ने पुरुष स्वरूप के माध्यम से अपने विचारों पर काम किया जबकि मूर्त विचारों की ओर झुकने वाले लोगों ने अपने विचारों को गणेश के महिला स्वरूप के रूप में स्थापित किया.
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